भारत में टमाटर एक प्रमुख सब्जी है जो लगभग हर मौसम में उपयोग होती है। अगर आप जैविक (ऑर्गेनिक) तरीके से टमाटर की खेती करना चाहते हैं, तो यह न केवल पर्यावरण के लिए फायदेमंद है, बल्कि बाजार में इसकी मांग और कीमत भी अधिक रहती है। नीचे टमाटर की जैविक खेती से जुड़ी पूरी जानकारी दी गई है — भूमि चयन से लेकर लागत और मुनाफा तक।
🌱 1. जलवायु, भूमि चयन, भूमि परीक्षण और सुधार
✅ जलवायु: टमाटर की खेती एक उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय फसल है, जो भारत के अधिकांश क्षेत्रों में की जा सकती है। लेकिन उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादन के लिए निम्नलिखित जलवायु परिस्थितियाँ उपयुक्त होती हैं:
बीज अंकुरण के लिए: 20°C से 30°C, पौधे की बढ़वार के लिए: 18°C से 27°C, फूल और फल बनने के समय: 21°C से 24°C, 30°C से अधिक तापमान पर परागण और फल-सेट में दिक्कत आती है और 10°C से कम तापमान पर पौधों की वृद्धि रुक जाती है।
✅ वर्षा और आर्द्रता और प्रकाश:
टमाटर को अधिक पानी या जलभराव पसंद नहीं होता। वार्षिक वर्षा 600–800 मिमी उपयुक्त होती है, लेकिन उचित जल निकासी जरूरी है। प्रतिदिन 6-8 घंटे की सीधी धूप टमाटर के लिए जरूरी है। छायादार क्षेत्रों में पौधे कमजोर और लंबे हो जाते हैं, और फल कम लगते हैं।
🌱 2. भूमि चयन (Land Selection)
टमाटर की फसल के लिए भूमि का सही चुनाव अत्यंत जरूरी है। जैविक खेती में भूमि की प्राकृतिक उर्वरता और पोषक तत्वों की उपलब्धता अहम होती है।
उपयुक्त मृदा प्रकार:
✅दोमट या बलुई दोमट मिट्टी जिसमें जैविक पदार्थ की मात्रा अधिक हो, उत्तम रहती है। रेतीली दोमट (Sandy loam) या चिकनी दोमट (Loamy) मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। भूमि में जल निकासी अच्छी होनी चाहिए। भारी चिकनी मिट्टी (Clayey soil) जलभराव कर सकती है, जिससे फसल खराब होती है।
✅ pH स्तर: टमाटर के लिए मिट्टी का pH 6.0 से 7.0 के बीच सबसे उपयुक्त होता है। बहुत अम्लीय या क्षारीय मिट्टी में पोषक तत्वों की उपलब्धता कम हो जाती है।
✅ पिछले फसल चक्र:
टमाटर के खेत में अगर पिछले 2 वर्षों में शोलानी कुल की फसलें (जैसे बैंगन, मिर्च, आलू) ली गई हों, तो नई टमाटर फसल को रोग और कीटों से भारी नुकसान हो सकता है। इसलिए फसल चक्र का पालन करना जैविक खेती की बुनियादी और जरूरी रणनीति है, जो उपज, गुणवत्ता और मिट्टी की सेहत — तीनों को सुरक्षित रखता है।
🧪 3. भूमि परीक्षण (Soil Testing)
जैविक खेती में भूमि परीक्षण बहुत आवश्यक है ताकि पोषक तत्वों की वास्तविक स्थिति ज्ञात हो और जैविक उर्वरकों का सही उपयोग किया जा सके। टमाटर की जैविक खेती से पहले मिट्टी में NPK, pH, कार्बनिक तत्वों और जीवाणु संतुलन की जांच जरूरी है।
✅ परीक्षण का समय: खेती शुरू करने से कम से कम 1.5–2 महीने पहले मिट्टी का परीक्षण करा लेना चाहिए।
✅ परीक्षण के लिए नमूना कैसे लें: खेत के 4–5 स्थानों से 15–20 सेमी गहराई तक की मिट्टी निकालें, इन सभी नमूनों को मिलाकर एक सम्मिलित नमूना तैयार करें। यह नमूना किसी मान्यता प्राप्त कृषि प्रयोगशाला में भेजें।
✅ परीक्षण में ध्यान देने योग्य बिंदु: pH स्तर, नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश (NPK)। सूक्ष्म पोषक तत्व – जैसे बोरॉन, जिंक, आयरन, मैग्नीशियम और कार्बनिक कार्बन की मात्रा।
🔧 4. खेत की तैयारी और भूमि सुधार (Soil Improvement Techniques)
अगर भूमि की गुणवत्ता उपयुक्त न हो तो जैविक तरीकों से उसका सुधार किया जा सकता है:
✅ 2-3 बार गहरी जुताई करें, जिससे खरपतवार नष्ट हो जाएं।
✅ जैविक खाद का प्रयोग: गोबर की सड़ी हुई खाद (FYM): 20–25 टन/हेक्टेयर, वर्मी कम्पोस्ट: 5–6 टन/हेक्टेयर, नीम खली या सरसों खली: 200–300 किग्रा/हेक्टेयर
✅ हरी खाद (Green Manuring): खेत में धैचा, सनई, लोबिया जैसी फसलें उगाकर मिट्टी में पलट दें। यह तकनीक मिट्टी की नमी और जैविक पदार्थ बढ़ाने में सहायक है।
✅ जैव उर्वरकों का प्रयोग: राइजोबियम, फॉस्फोबैक्टीरिया, एजोटोबैक्टर आदि जैसे जैव उर्वरक मिट्टी में लाभकारी जीवाणुओं की संख्या बढ़ाते हैं। ये पोषक तत्वों को पौधों द्वारा ग्रहण करने योग्य बनाते हैं।
✅ pH सुधार के उपाय: बहुत अम्लीय भूमि में गोली चूना (Agricultural Lime) डालकर pH सुधारा जा सकता है। क्षारीय भूमि में जिप्सम का प्रयोग किया जाता है।
✅ मिट्टी की नमी बनाए रखना: खेत में जैव मल्चिंग (जैसे सूखे पत्ते, भूसा, गन्ने की पत्तियाँ) का प्रयोग करें। इससे वाष्पीकरण कम होता है और खरपतवार भी नियंत्रित रहते हैं।
5. 🌱 बीज
टमाटर की उन्नत जैविक किस्में
किस्मों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है:
देशी किस्में: अधिक स्वादिष्ट, स्थानीय जलवायु के अनुकूल
हाइब्रिड जैविक किस्में: अधिक उपज और रोग प्रतिरोधक, उदाहरण: इंदम-5, कृषी भारती, अर्का सम्राट (हाइब्रिड ऑर्गेनिक किस्म)
कुछ प्रमुख जैविक किस्में जो ऑर्गेनिक खेती के लिए उपयुक्त हैं:
किस्म का नाम उपज (टन/हेक्टेयर) विशेषता
अर्का रक्षक 30-35 रोग प्रतिरोधक
अर्का विकास 35-40 अच्छी आकार और रंग
पूर्णिमा 25-30 जैविक खेती के लिए उपयुक्त
बीज उपचार और अंकुरण सुधार
बीजों को गोमूत्र + गौमूत्र अर्क + ट्राइकोडर्मा मिश्रण में 12 घंटे भिगोएं।
अंकुरण के लिए कोकोपीट + वर्मी कम्पोस्ट + बालू की मिश्रित नर्सरी मिट्टी तैयार करें।
नर्सरी में जैविक मल्चिंग (केंद्रित घास या पत्तियां) करें।
बीज की बुवाई और नर्सरी
बीज दर: 80-100 ग्राम प्रति एकड़, बीजों को बोने से पहले त्रिकोडर्मा या पेंसेलियम जैविक फफूंदनाशक से उपचार करें। नर्सरी में 25-30 दिन के पौध तैयार करें। रोपाई के समय पौधों की ऊंचाई 10-15 से.मी. होनी चाहिए।
रोपाई और दूरी
पंक्ति से पंक्ति दूरी: 60 से.मी. और पौधे से पौधे की दूरी: 45 से.मी.
एक एकड़ में लगभग 7,000 से 8,000 पौधे लगाए जा सकते हैं।
💧 6. सिंचाई व्यवस्था -
पहली सिंचाई: रोपाई के तुरंत बाद और फिर: सप्ताह में 1-2 बार (मौसम अनुसार)
नोट - ड्रिप सिंचाई पद्धति जैविक खेती में अधिक उपयोगी है — यह जल और उर्वरक दोनों की बचत करता है।
7. फसल की देखभाल —
सप्ताहवार कार्यक्रम
सप्ताह कार्य
1-2 नर्सरी देखभाल, नीम तेल छिड़काव
3-4 खेत की तैयारी, कंपोस्ट डालना
5-6 रोपाई और पहली सिंचाई
7-8 मल्चिंग, खरपतवार नियंत्रण
9-12 फूल आने की शुरुआत, पोषक घोल छिड़काव
13-16 फल वृद्धि, तुड़ाई की तैयारी
रोग और कीट प्रबंधन (जैविक उपाय)
समस्या जैविक उपाय
पत्ती मरोड़ नीम का तेल 5 मिली/लीटर पानी में
झुलसा रोग ट्राइकोडर्मा 5 ग्राम/लीटर
फल सड़न गोमूत्र और नीमास्त्र का छिड़काव
थ्रिप्स, माइट्स लहसुन-नीम घोल या दसपर्णी अर्क
NOTE -
प्राकृतिक कीट नियंत्रण तकनीकें
दशपर्णी अर्क: नीम, तुलसी, गिलोय, धतूरा, इत्यादि 10 पत्तियों से तैयार अर्क
नीमास्त्र: नीम की पत्तियां + गोमूत्र + लहसुन का मिश्रण
अग्नास्त्र: लाल मिर्च, लहसुन, अदरक + गोमूत्र का काढ़ा
उपयोग की विधियाँ, अनुपात और छिड़काव की समयावधि को विस्तार में समझाया जा सकता है।
प्राकृतिक उर्वरक और जैविक घोल बनाने की विधियाँ
जीवामृत: गोबर, गोमूत्र, गुड़, बेसन, मिट्टी और पानी का घोल
घन जीवामृत: वही सामग्री गाढ़े रूप में (मिट्टी में मिलाने के लिए)
पंचगव्य: दूध, दही, घी, गोमूत्र और गोबर से बना टॉनिक
🧺 8. तुड़ाई, भंडारण और विपणन
रोपाई के 60-70 दिन बाद तुड़ाई शुरू हो जाती है। प्रति एकड़ 200-250 क्विंटल तक जैविक टमाटर का उत्पादन संभव है।
टमाटर को सड़े-गले फलों से छांटना (Sorting): टमाटर की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए यह सबसे पहला और जरूरी कदम है क्योकि यह सड़े-गले, फफूंद लगे या अधिक पके हुए टमाटरों को छांटना आवश्यक होता है क्योंकि ये अन्य स्वस्थ टमाटरों को भी जल्दी खराब कर सकते हैं। छंटाई हाथ से की जाती है, जिससे यह सुनिश्चित हो कि केवल सही रंग, आकार और दृढ़ता वाले टमाटर ही आगे उपयोग में लिए जाएं। यह प्रक्रिया साफ-सुथरे स्थान पर करनी चाहिए और श्रमिकों के हाथ स्वच्छ होने चाहिए।
लकड़ी के कैरेट या बांस की टोकरी में भंडारण: जैविक खेती में पर्यावरण-अनुकूल सामग्री का प्रयोग किया जाता है:
लकड़ी के कैरेट और बांस की टोकरी पारंपरिक, टिकाऊ और प्राकृतिक होती हैं। इनसे टमाटरों को हवा लगती रहती है जिससे वे जल्दी खराब नहीं होते। इन्हें अंदर से केले के पत्तों, सूखी घास या कागज की परत से बिछाया जा सकता है ताकि टमाटर को झटकों से बचाया जा सके। भंडारण करते समय टमाटरों को बहुत अधिक ऊँचाई तक न रखा जाए, क्योंकि इससे निचले फल दबकर खराब हो सकते हैं।
टमाटर का जैविक प्रमाण पत्र और मार्केटिंग:
- जैविक प्रमाणन (जैसे NPOP – National Program for Organic Production) के तहत प्रमाणित उत्पादों की मांग बाजार में तेजी से बढ़ रही है। यह प्रमाण पत्र यह साबित करता है कि टमाटर की खेती में कोई रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक या जीएमओ बीज का प्रयोग नहीं किया गया है। प्रमाणन के बाद किसान अपने उत्पाद को जैविक मंडियों, किसान बाजारों (Farmer’s Market), होटल, रिटेल स्टोर्स और सीधे उपभोक्ताओं तक बेच सकते हैं।
- जैविक उत्पादों के लिए ऑनलाइन विपणन भी एक अच्छा विकल्प है – जैसे कि Amazon, BigBasket, और अन्य कृषि आधारित पोर्टल्स।
- फार्म-टू-मार्केट बिक्री की संभावना (Farm-to-Market Sales): यह मॉडल उपभोक्ता को ताजा, सुरक्षित और प्रमाणित उत्पाद उपलब्ध कराता है और किसान को बेहतर लाभ देता है क्योंकि बिचौलियों की भूमिका कम हो जाती है।
- किसान अपने खेत पर "U-Pick" सुविधा भी शुरू कर सकते हैं जिसमें उपभोक्ता स्वयं खेत में आकर ताजे टमाटर तोड़ते हैं।
- जैविक फार्म टूर और CSA (Community Supported Agriculture) जैसी योजनाओं के जरिए स्थानीय उपभोक्ताओं से सीधा जुड़ाव किया जा सकता है।
भंडारण तापमान और परिवहन: जैविक टमाटरों को 12–15°C तापमान पर संग्रहित करना उचित रहता है ताकि ताजगी बनी रहे और वे जल्दी खराब न हों। परिवहन में वेंटिलेशन वाले वाहन या ठंडी जगह में रखने की व्यवस्था होनी चाहिए। टमाटरों को साफ-सुथरे और सूखे डिब्बों में रखा जाना चाहिए और हर लेयर के बीच नरम परत डाली जानी चाहिए ताकि bruising न हो।
जैविक विपणन की चुनौतियाँ और समाधान:
चुनौती: जैविक उत्पादों की पहचान और ट्रस्ट। सामान्य से अधिक लागत। सीमित बाजार पहुँच।
समाधान: पहचान और ट्रस्ट के लिए स्पष्ट लेबलिंग, QR कोड से ट्रेसबिलिटी करे। गुणवत्ता पर फोकस कर प्रीमियम मार्केट को लक्ष्य बनाए। सोशल मीडिया, ऑनलाइन स्टोर, किसान उत्पादक कंपनियों (FPOs) से जुड़ाव बनाए।
टमाटर की जैविक खेती में पैकिंग, भंडारण और विपणन की सही रणनीतियाँ अपनाकर किसान न सिर्फ उपभोक्ता तक सुरक्षित उत्पाद पहुँचा सकते हैं, बल्कि बेहतर मुनाफा भी कमा सकते हैं। स्थानीय और वैश्विक जैविक बाजार की मांग बढ़ रही है, और यह एक उत्कृष्ट अवसर है।
💰 8. लागत और मुनाफा विश्लेषण (प्रति एकड़)
मद अनुमानित लागत (₹)
बीज ₹800
नर्सरी व तैयारी ₹2,000
जैविक खाद व कम्पोस्ट ₹6,000
सिंचाई (ड्रिप/सामान्य) ₹3,000
जैविक कीटनाशक ₹2,000
मजदूरी ₹6,000
अन्य खर्च (ट्रांसपोर्ट, टोकरी, पैकिंग आदि) ₹3,000
कुल लागत ₹22,800
📈9. संभावित आय (मंडी मूल्य अनुसार)
उत्पादन: 200 क्विंटल × ₹1000/क्विंटल (न्यूनतम मूल्य) = ₹2,00,000
मुनाफा: ₹2,00,000 - ₹22,800 = ₹1,77,200 प्रति एकड़
(अगर मूल्य ₹12-₹15 प्रति किलो हुआ, तो मुनाफा और भी ज्यादा होगा।)
✅ 10. विशेष सुझाव
- अपने उत्पाद को "ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन" दिलवाएं जिससे बाजार में अच्छी कीमत मिल सके।
- लोकल फार्मर मार्केट, ऑर्गेनिक स्टोर, और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म जैसे BigBasket या Krishi Jagran से संपर्क करें।
- इंटरक्रॉपिंग और मल्चिंग तकनीकटमाटर की जैविक खेती में इंटरक्रॉपिंग और मल्चिंग तकनीकें न केवल उत्पादन को बढ़ाने में सहायक होती हैं, बल्कि मिट्टी की गुणवत्ता, नमी संरक्षण और खरपतवार नियंत्रण में भी अहम भूमिका निभाती हैं। नीचे इन दोनों तकनीकों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत है:
इंटरक्रॉपिंग (Intercropping) तकनीक:
इंटरक्रॉपिंग का अर्थ होता है—मुख्य फसल (यहाँ टमाटर) के साथ एक या अधिक सहायक फसलें बोना, जिससे भूमि का अधिकतम उपयोग हो और फसल विविधता से लाभ मिले। टमाटर की जैविक खेती में निम्न फसलें इंटरक्रॉपिंग के लिए उपयुक्त हैं:
धनिया (Coriander): इसकी जड़ों से निकलने वाले सुगंधित तत्व कुछ कीटों को दूर रखते हैं और यह बाजार में भी अच्छी मांग रखता है।
पालक (Spinach): यह जल्दी बढ़ने वाली फसल है, जो भूमि को ढँकने में मदद करती है और खरपतवारों को नियंत्रित करती है।
मेथी (Fenugreek): मिट्टी को नाइट्रोजन से समृद्ध करने में सहायक होती है और एक अच्छी हरी खाद का काम भी करती है।
लहसुन (Garlic): इसकी गंध कीटों को दूर रखने में सहायक होती है। साथ ही यह मूल्यवान नगदी फसल भी है।
इंटरक्रॉपिंग के लाभ:
जैविक pest-repellent के रूप में कार्य। भूमि की अधिकतम उपयोगिता। पोषक तत्वों का बेहतर संतुलन। अतिरिक्त आमदनी।
बोआई विधि:
टमाटर की कतारों के बीच 30-40 सेमी की दूरी होती है, जिसमें आप धनिया, पालक या लहसुन जैसी कम फैलाव वाली फसलें बो सकते हैं। ध्यान दें कि सहायक फसल टमाटर के प्रकाश और पोषण पर प्रतिकूल प्रभाव न डाले।
जैविक मल्चिंग (Organic Mulching): जैविक मल्चिंग एक ऐसी विधि है जिसमें मिट्टी की सतह को जैविक सामग्री जैसे सूखी पत्तियाँ, पुआल, घास की कतरन, कंपोस्ट, या नारियल की भूसी से ढक दिया जाता है। यह प्रक्रिया मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार करती है, खरपतवारों को कम करती है, और पौधों को संरक्षित करती है
मल्चिंग का उद्देश्य मिट्टी को ढक कर उसकी नमी बनाए रखना, तापमान नियंत्रित करना और खरपतवार को रोकना होता है। जैविक मल्चिंग में रासायनिक सामग्री का प्रयोग नहीं होता, बल्कि प्राकृतिक सामग्रियों का उपयोग होता है। निम्न सामग्री का उपयोग किया जा सकता है:
सूखी घास या पुआल (Straw), गिरी हुई सूखी पत्तियाँ, नारियल की भूसी, लकड़ी का बुरादा, गेहूँ, धान या जौ की भूसी
प्रयोग विधि: रोपण के 2–3 सप्ताह बाद, जब पौधे थोड़े बड़े हो जाएं, तब पौधों के चारों ओर 5–7 सेमी मोटी परत में मल्च बिछाएँ। ध्यान रखें कि मल्च पौधों के तनों को सीधा न छुए, जिससे फफूंद या कीड़े न लगें।
मल्चिंग से मिट्टी में नमी लंबे समय तक बनी रहती है, जिससे सिंचाई की आवश्यकता कम होती है। खरपतवारों की वृद्धि पर नियंत्रण होता है। मल्च के विघटन से मिट्टी में कार्बनिक तत्व (organic matter) बढ़ते हैं और मिट्टी के तापमान को संतुलित रखता है साथ ही वर्षा के समय भूमि कटाव और पोषक तत्वों के बहाव से रक्षा करता है।
सावधानियाँ: मल्चिंग सामग्री पूरी तरह सड़ी-गली और बिना बीजों वाली होनी चाहिए, अन्यथा खरपतवार फैलने की संभावना रहती है। गीली घास में फफूंद रोग फैलने की संभावना रहती है, अतः अच्छी वायु संचार व्यवस्था सुनिश्चित करें।
टमाटर की जैविक खेती में इंटरक्रॉपिंग और जैविक मल्चिंग तकनीकें मिलकर एक सशक्त प्रणाली बनाती हैं, जो टिकाऊ (sustainable), लाभकारी और पर्यावरणीय रूप से सुरक्षित होती हैं। इन तकनीकों के उचित उपयोग से उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ भूमि की उर्वरता भी लंबे समय तक बनी रहती है।
11. सरकारी योजनाएँ और सब्सिडी
- PKVY (Paramparagat Krishi Vikas Yojana) के तहत जैविक खेती पर 50% तक सब्सिडी।
- राष्ट्रीय जैविक खेती मिशन (NPOF): प्रशिक्षण, मार्केट लिंक, सर्टिफिकेशन में मदद।
- FPOs (Farmer Producer Organisations): समूह बनाकर बाजार तक सीधा पहुंच।
12. प्रशिक्षण और संसाधन
ऑनलाइन कोर्स: eNAM, KrishiJagran, AgriGuru प्लेटफॉर्म से फ्री प्रशिक्षण
संबंधित संस्थान:
Indian Institute of Horticultural Research (IIHR)
Krishi Vigyan Kendra (KVK)
NCOF (National Centre of Organic Farming
टमाटर की जैविक खेती एक स्थायी, लाभकारी और पर्यावरण-अनुकूल व्यवसाय है, जो सीमित लागत में भी ऊँची कमाई की संभावना देता है। अगर उचित तकनीक, प्रशिक्षण और विपणन किया जाए तो किसान जैविक टमाटर से दोगुना लाभ कमा सकते हैं।
G D PANDEY
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